• web development India, website developers in usa
  • web development India, website developers in usa
  • web development India
  • web development India

इतिहास

धम्मकेतु विपश्यना ध्यान केन्द्र

ग्राम: थनौद, व्हाया अंजोरा, जिला – दुर्ग
9907755013, 9589842737

नमन करें हम धरम को, धरम करे कल्याण |
धरम सदा रक्षा करे, धरम बड़ा बलवान ||

प्रिय साधक भाई / बहन,


आशा है, आपकी प्रतिदिन की साधना नियमित चल रही होगी. दैनिक साधना के अतिरिक्त प्रत्येक सप्ताह सामूहिक साधना एवं समय समय पर एक दिवसीय तथा 2-3 दिन के लघु शिविर साधना को पुष्ट करने में सहायक होते हैं. अत: इनका भी लाभ लेते रहें.

परम पूज्य गुरूजी के मंगल आशीर्वाद तथा श्रद्धेय श्री लक्ष्मी नारायण जी राठी के सतत उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन के फलस्वरूप दिनांक 19.09.1995 को धम्मकेतु का भूमिपूजन हुआ. असंख्य सेवाभावी साधकों के धम्मदान, श्रमदान एवं अर्थदान से सितम्बर 1996 से इस तपोभूमि पर शिविरों का आयोजन हो रहा है.

इतने वर्षों के अनुभव से यह देखा गया है कि शिविर में होने वाले खर्च के मुकाबले शिविर समाप्ति पर प्राप्त होने वाले दान की राशि कम होती है. प्रत्येक माह लगभग रु. 30,000/- से 35,000/- की कमी (deficit) रह जाती है. हर शिविर में होने वाले इस आय – व्यय की कमी (deficit) कि वजह से जो दान निर्माण कार्य के लिए प्राप्त होता है, उसमे से कुछ हिस्सा शिविरों के आयोजन के लिए उपयोग में लाना पड़ता है, जिससे कि निर्माण कार्य भी पूर्ण गति से नहीं हो पाता है.

आप जानते ही है कि साधकों द्वारा पूर्णतया स्वेच्छा से दिया हुआ दान ही केंद्र कि आय का एक मात्र साधन है. समय समय पर साधकों से बड़े उत्साह एवं शुद्ध चेतना से दान आ ही रहा है; किन्तु बड़ी संख्या में निष्ठावान साधकों को हर शिविर में होने वाले न्यूनता (deficit) की जानकारी नहीं है. अत: उन तक यह जानकारी पहुँचाना ही इस पत्र का उद्देश्य है ताकि वे भावना होते हुए भी धर्म – दान के पुण्य लाभ से वंचित न रह जाएँ. चाहें तो साधक भाई/ बहन प्रत्येक माह दान देने का शुभ संकल्प कर सकते है ताकि धम्मकेतु से शुद्ध धरम कि यह गंगा चिरकाल तक प्रवाहित होती रहे. शुद्ध चित्त से दिया दान, ब्रह्मविहार के अभ्यास में भी सहायक होता है. इस सन्दर्भ में विपश्यना पत्रिका में प्रकाशित पूज्य गुरूजी का एक आलेख इस पत्र के अंत में दें रहे हैं, जो अत्यंत प्रेरणा दायी है.

भारत में तथा विश्व में कल्याणी विपश्यना द्वारा लोक कल्याण का पुण्य कार्य लम्बे अरसे तक गतिमान रहे, इस धर्म चेतना से दिया हुआ कोई भी सहयोग थोड़ा हो या अधिक, सचमुच बहुत पुण्य फलदायी ही होगा.

मंगल मैत्री सहित,
ट्रस्टी एवं प्रबंधक गण, धम्मकेतु.
Bank A/c no. 1575237007, Central Bank of India, Durg. IFS Code: CBIN0282131
PAN No.: AAATD7223N. Exemption u/s 80-G of I.T. Act, 1961 available.

टिप्पणी: दान कि राशि सीधे बैंक खाते में NEFT/ चैक द्वारा जमा करने कि स्थिति में UTR CODE/ Transaction Reference No., रकम, आपका नाम एवं पता कृपया मोबाइल नं. 9425244706 पर SMS या WhatsApp द्वारा सूचित करें ताकि रसीद भेजी जा सके.

उद्बोधन : ब्रह्मविहारनिर्माणाधीन

मेरे प्यारे साधक साधिकाओं!

अपरिमित ब्रह्मविहारों का अभ्यास करना चाहिए |

अपरिमित मैत्री ब्रह्मविहार का अभ्यास करना चाहिए | अपरिमित करुणा ब्रह्मविहार का अभ्यास करना चाहिए | अपरिमित मुदिता ब्रह्मविहार का अभ्यास करना चाहिए | अपरिमित उपेक्षा ब्रह्मविहार का अभ्यास करना चाहिए | चारों अपरिमित ब्रह्मविहारों का अभ्यास करना चाहिए |

चारों अपरिमित ब्रह्मविहारों के अभ्यास का एक सरल तरीका है - महाफल दायी त्रिकालिक त्रिविध परिशुद्ध दान |

दान कैसे त्रिकालिक परिशुद्ध होता है? जब दायक का चित्त दान देने के पूर्व, दान देते समय और दान देने के पश्चात् असीम प्रीति प्रमोद से ओत प्रोत रहता है, तब दान त्रिकालिक परिशुद्ध होता है.

दान कैसे त्रिविध परिशुद्ध होता है? जब दान देने वाला शुद्ध शील संपन्न हो; जब दान लेने वाला शुद्ध शील संपन्न हो; जब जो कुछ दिया जा रहा है, वह परिमाण में चाहे थोड़ा हो या बहुत; कीमत में भी चाहे थोड़ा हो या बहुत, परन्तु हो शुद्ध; यानी अपनी मेहनत की, ईमानदारी की, सम्यक आजीविका की कमाई का हो , तो दान त्रिविध परिशुद्ध होता है.

त्रिकालिक त्रिविध परिशुद्ध दान महाफल दायी होता है |

ऐसा दान ब्रह्मविहार के अभ्यास का कारण कैसे बन जाता है?

तब बन जाता है जब कि दान में दी गयी वस्तु अथवा स्थान अथवा सहूलियत किसी व्यक्ति विशेष के लिए ही न हो, बल्कि समस्त भिक्षु-संघ के लिए हो, समस्त श्रावक-संघ के लिए हो, समस्त साधक-संघ के लिए हो. सार्वजनीन हो. सबके हित-सुख के लिए हो.

ऐसे दान के कारण दायक का चित्त यह सोचकर अपरिमित मैत्री से भर जाता है कि मेरे इस दान से अनगिनत लोग सुख लाभी हो रहे हैं या होंगे; धर्मलाभी हो रहे हैं या होंगे. उसका चित्त अपरिमित करुणा से भर जाता है कि संसार में कितने लोग दुखियारे हैं जिन्हें कि इस दान से दुःख विमुक्ति मिलेगी, सुखलाभ मिलेगा, धर्मलाभ मिलेगा.

उसका चित्त अपरिमित मुदिता से भर जाता है कि अहो! मेरे इस दान से कितने लोग सुखलाभी धर्मलाभी हो कर प्रसन्न हो रहे हैं, मुदित हो रहे हैं.

उसका चित्त अपरिमित उपेक्षा से भर जाता है कि मेरे इस दान कि कोई प्रशंसा करे या निंदा करे, मुझे इससे यश मिले या अपयश मिले, मुझे सरोकार नहीं है. अपनी निज प्रशंसा या यश-अपयश के लिए यह दान नहीं है. शुद्ध चेतना से दिया हुआ यह दान तो मात्र परहित के लिए ही है.

इस प्रकार साधकों! परिशुद्ध दान द्वारा चारों ब्रह्मविहारों का अभ्यास किया जाता है.

साधको! अपरिमित ब्रह्मविहारों का अभ्यास करना चाहिए | अपरिमित ब्रह्मविहारों का अभ्यास हमारे लिए असीम मंगलदायी है, कल्याण दायी है.

- कल्याण मित्र सत्यनारायण गोयन्का

( विपश्यना पत्रिका संग्रह; भाग-1, जुलाई 1971 से जून 1974; पृष्ठ 47-48) .