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पृष्ठभूमि

S. N. Goenka at U.N.
30 जनवरी 1924, मांडले, म्यांमार ( बर्मा ) से 29 सितम्बर 2013, मुम्बई

श्री गोयन्काजी का जन्म म्यंमा (बर्मा) में हुआ । वहां रहते हुए सौभाग्य से वे सयाजी उ बा खिन के संपर्क में आये एवं उनसे विपश्यना का प्रशिक्षण प्राप्त किया । चौदह वर्षों तक अपने गुरूदेव से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद श्री गोयन्काजी भारत आये और उन्होंने १९६९ में विपश्यना सिखाना शुरू किया । जातीयता एवं सांप्रदायिकता से प्रभावित भारत में श्री गोयन्काजी के शिविरों में समाज के हर तबके के हजारो लोग सम्मिलित हुए है । आज विश्व भर के लगभग १४० देशों के लोग विपश्यना शिविरों में भाग लेकर लाभान्वित होते हैं ।

श्री गोयन्काजी ने भारत में एवं विदेशों में ३०० से ज्यादा शिविरों का संचालन किया है एवं कईं हजारो लोगों को विपश्यना सिखायी है । शिविरों की बढ़ती मांग को देखकर १९८२ में उन्होंने सहायक आचार्य नियुक्त करना शुरू किया । उनके मार्गदर्शन में भारत, केनेडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फ्रान्स, स्पैन, बेल्जियम, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, ताइवान, श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, नेपाल, ईरान, मेक्सिको, ब्राजील, आर्जेंटीना, साऊथ आफ्रीका, मंगोलिया आदि कईं देशों में विपश्यना केंद्रों की स्थापना हुई है ।

आज आचार्य गोयन्काजी जो विपश्यना सिखाते हैं, उसको लगभग २५०० वर्ष पूर्व भारत में भगवान बुद्ध ने पुन: खोज निकाला था । भगवान बुद्ध ने कभी भी सांप्रदायिक शिक्षा नहीं दी । उन्होंने धर्म (धम्म (Dhamma)) सिखाया जो कि सार्वजनीन है । विपश्यना सांप्रदायिकताविहीन विद्या है । यही कारण है कि यह विद्या विश्व भर सभी पृष्ठभूमियों के लोगों को आकर्षित करती है, चाहे वे किसी भी संप्रदाय के हो या किसी भी संप्रदाय में न विश्वास करने वाले हो ।

श्री गोयन्काजी को भारतके राष्ट्रपति द्वारा २०१२ साल मे प्रतिष्ठा का पद्म पुरस्कार प्रदान किया गया । भारत के सरकार द्वारा दिया गया यह उच्च नागरी पुरस्कार है ।

सत्यनारायण गोयंकाजी ने सितम्बर २०१३ मे अपनी अंतिम साँस ली, उस समय उनकी आयु ८९ साल थी । अविनाशी विरासत के पार उन्होंने छोड दी है विपश्यनाकी तकनीक, जो अभी दुनियाभर के लोगों के लिये अधिक व्यापक रुप से उपलब्ध है ।